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Rajesh Reddy

@Rajeshreddyvb

मैं तो होने में लगा रहता हूँ होता रहता है न होना मेरा - राजेश रेड्डी


वो आफ़ताब लाने का देकर हमें फ़रेब हमसे हमारी रात के जुगनू भी ले गया - राजेश रेड्डी


आख़िरी ख़्वाहिश जो पूछी वक़्त ने पहली ख़्वाहिश मुस्कुरा कर रह गई - राजेश रेड्डी


धोखा है इक फ़रेब है मंज़िल का हर ख़याल सच पूछिए तो सारा सफ़र वापसी का है - राजेश रेड्डी


जिस दिन जिस्म की गुल्लक फूटी ग़म के कितने ___ सिक्के निकले - राजेश रेड्डी


कल रात आसमाँ पे सितारों का जश्न था सूरज की आँख आज ज़रा देर से खुली - राजेश रेड्डी


ग़ज़ल मिरी आँखों पे मंज़र कब खुलेगा जो दर वा* है वो मुझ पर कब खुलेगा *खुला रहेगा कब तलक तू आस्तीं में तिरा याराना खुल कर कब खुलेगा तू जिस दर से निकल पड़ता है बाहर वही दर तेरे अंदर कब खुलेगा सफ़र में चार दिन तो हो गए हैं ख़ुदा जाने ये बिस्तर कब खुलेगा - राजेश रेड्डी


मैंने तो बाद में तोड़ा था उसे आईना मुझपे हंसा था पहले - राजेश रेड्डी


ग़ज़ल जाने कितनी उड़ान बाक़ी है इस परिंदे में जान बाक़ी है जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं अब तो बस आसमान बाक़ी है अब वो दुनिया अजीब लगती है जिस में अम्न-ओ-अमान बाक़ी है इम्तिहाँ से गुज़र के क्या देखा इक नया इम्तिहान बाक़ी है - राजेश रेड्डी

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जाने कितनी उड़ान बाक़ी है
इस परिंदे में जान बाक़ी है

जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाक़ी है

अब वो दुनिया अजीब लगती है
जिस में अम्न-ओ-अमान बाक़ी है

इम्तिहाँ से गुज़र के क्या देखा
इक नया इम्तिहान बाक़ी है

- राजेश रेड्डी

ग़ज़ल बे-घरी का अपनी ये इज़हार कम कर दीजिए शे'र में ज़िक्र-ए-दर-ओ-दीवार कम कर दीजिए अपनी तन्हाई में इतना भी ख़लल अच्छा नहीं आप अपने-आपसे गुफ़्तार कम कर दीजिए दुश्मनों की ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगी तादाद कम यारों की फ़ेहरिस्त में कुछ यार कम कर दीजिए - राजेश रेड्डी


सब कहाँ दुनिया में हो पाए फ़क़ीर कुछ फ़क़त सुलतान हो कर रह गए - राजेश रेड्डी سب کہاں دنیا میں ہو پائے فقیر کچھ فقط سلطان ہو کر رہ گئے راجیش ریڈی


ग़ज़ल मेरा तो यहाँ होना भी छीना गया मुझसे इक खेल मेरे बाद भी खेला गया मुझसे बीनाई* मेरी बोझ हुई जाती थी मुझ पर वो देख रहा था जो न देखा गया मुझसे *drishti आसान न था यूँ भी मेरा साथ निभाना इक रोज़ मेरा साया भी तंग आ गया मुझसे - राजेश रेड्डी


वो आफ़ताब लाने का देकर हमें फ़रेब हमसे हमारी रात के जुगनू भी ले गया - राजेश रेड्डी


अपने ही आस-पास रहता हूँ मैं मुकम्मल उदास रहता हूँ - राजेश रेड्डी


जागे तो नज़र आया न वाजिब कोई मंज़र सोए तो कोई  ख़्वाब मुनासिब नहीं आया - राजेश रेड्डी


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