__amitsingh's profile picture. आह जिस वक़्त सर उठाती है, अर्श पे बर्छियाँ चलाती है ! ~मीर तक़ी ‘मीर’ @meertaqimeerjee

amit singh

@__amitsingh

आह जिस वक़्त सर उठाती है, अर्श पे बर्छियाँ चलाती है ! ~मीर तक़ी ‘मीर’ @meertaqimeerjee

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कीजिए इश्क़ बन्दगी की जगह और फिर जानिए ख़ुदा क्या है #अमित_अब्र


क़ुर्बत-ए-इश्क़ चाह कर भी मुझे रहगुज़र में दुआ नहीं देती #अमित_सिंह


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Nazm : बेटियाँ कभी जुस्तजू, कभी आरज़ू कभी जज़्बात होती हैं बेटियाँ कभी ज़िन्दगी, कभी रूह-ए-ज़िन्दगी तो कभी आब-ए-हयात होती हैं बेटियाँ कभी सवाल, कभी जवाब कभी पूरी किताब होती हैं बेटियाँ कभी दिन, कभी रात, कभी आफ़ताब तो कभी माहताब होती हैं बेटियाँ कभी नज़र, कभी नूर-ए-नज़र…

divya_sabaa's tweet image. Nazm : बेटियाँ 

कभी जुस्तजू, कभी आरज़ू 
कभी जज़्बात होती हैं बेटियाँ 
कभी ज़िन्दगी, कभी रूह-ए-ज़िन्दगी 
तो कभी आब-ए-हयात होती हैं बेटियाँ 

कभी सवाल, कभी जवाब 
कभी पूरी किताब होती हैं बेटियाँ
कभी दिन, कभी रात, कभी आफ़ताब 
तो कभी माहताब होती हैं बेटियाँ

कभी नज़र, कभी नूर-ए-नज़र…

ग़म की सूरत है रोज़-ओ-शब और अब सूरत-ए-ग़म सदा नहीं देती #अमित_सिंह


गुलशन के कार-ओ-बार से फ़ुर्सत मिले तो फिर सहरा में भी बराए सफ़र जाना चाहिए -दिव्या सबा @divya_sabaa


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कभी मज़लूम के हक़ में हुकूमत हो नहीं सकती बदन जो थक चुके उन से बग़ावत हो नहीं सकती हक़ीक़त क्या है ये बात आदतन दिल जान जाता है मुहब्बत में मुहब्बत की सियासत हो नहीं सकती मिला है वो सिला मुझ को मुहब्बत में मुहब्बत का किसी सूरत किसी से अब मुहब्बत हो नहीं सकती #अमित_सिंह


वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी अजीब शख़्स है अपना भी है पराया भी ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था दिया जलाया भी मैं ने दिया बुझाया भी मैं चाहता हूँ ठहर जाए चश्म-ए-दरिया में लरज़ता अक्स तुम्हारा भी मेरा साया भी -आनिस मुईन


-बीनिश रज़ा @binishraza

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@binishraza

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कभी असरार-ए-उल्फ़त है, कभी पहचान उल्फ़त की कभी क़ासिद, कभी ख़त तो कभी उल्फ़त का सामाँ गुल #अमित_सिंह @__amitsingh #Khat #Shair


गर मना मुझ को करते हैं तेरी गली से लोग क्यूँकर न जाऊँ मुझ को तो मरना है ख़्वा-मख़्वाह -मीर तक़ी मीर


हिज्र में पढ़ के ‘मीर’ की ग़ज़लें इश्क़ में चाक-दिल सिया हम ने #अमित_सिंह


आसमाँ से बाँट कर आती ज़मीं पे क्या कि जो रौशनी ये एक जैसी सब के दर आती नहीं #अमित_सिंह


तरदीद तो कर सकता था फैलेगी मगर बात इस तौर भी होगी तिरी रुस्वाई ज़रा और -आनिस मुईन तरदीद = रद्द करना, खंडन


बड़े अज़ाब में हूँ मुझ को जान भी है अज़ीज़ सितम को देख के चुप भी रहा नहीं जाता -ज़ेब ग़ौरी


बयाज़ भर भी गई और फिर भी सादा है तुम्हारे नाम को लिक्खा भी और मिटाया भी -आनिस मुईन बयाज़ = डायरी


दैर से उठ के काबे आया ‘मीर’ जिस को चाहे ख़ुदा ख़राब करे -मीर तक़ी मीर


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अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे... #मीर_तक़ी_मीर


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